भाषा किसी देश की सांस्कृतिक समृद्धि की सूचक होती है: डॉ कामिनी वर्मा

डॉ कामिनी वर्मा
Image Source: Dr. Kamini Verma

वैचारिक संप्रेषण के लिए भाषा की आवश्यकता होती है। धरती पर जब से मनुष्य का अस्तित्व है तभी से वह भाषा का प्रयोग कर रहा है। ध्वनि एवं संकेत दोनों रूपों में वैचारिक आदान – प्रदान होता रहा है । भारत भाषा और बोलियों की दृष्टि से समृद्ध देश है। भारत के लिए कहा जाता है।

कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर वाणी

यहाँ अनगिनत भाषाएं व बोलियां बोली जाती हैं। वर्तमान में लगभग 780 भाषाएं व 2000 बोलियां प्रचलित है । भाषा और बोली देश की सांस्कृतिक समृद्धि की सूचक होती है । परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है , जैसे जैसे जीवन परिवर्तित होता है वैसे वैसे सांस्कृतिक मूल्य भी परिवर्तित होते हैं। मनुष्य का जीवन स्तर, आचार – विचार, रहन -सहन में बदलाव का प्रभाव भाषा व बोली पर भी पड़ता है। पिछले 50 वर्षों में भारत में  220 भाषाएं प्रचलन से बाहर हो गईं और आगे आने वाले 50 वर्षों में 150 भाषाएं समाप्त होने के कगार पर हैं।

भाषा का राष्ट्र की एकता , अखंडता व विकास में महत्वपूर्ण योगदान होता है । राष्ट्रभाषा देश को भावनात्मक व सांस्कृतिक रूप से संगठित करने में सहायक होती है । प्राचीन काल में कश्मीर से कन्याकुमारी तक , आसाम से लेकर सौराष्ट्र तक समस्त सांस्कृतिक तथा धार्मिक चर्चा व वैचारिक आदान – प्रदान संस्कृत भाषा में होता था।

विदेशी आक्रमण व अपनी क्लिष्टता के कारण इसका महत्व न्यून हुआ और हिंदी वैचारिक अभिव्यक्ति की भाषा बनी । इसका सम्पूर्ण राष्ट्र की एकता, अखंडता व सांस्कृतिक समृद्धि में अमूल्य योगदान है । यह मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान , उत्तर प्रदेश , उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश में मुख्य रूप से बोली जाती है ।
 इसके संवर्धन में अमूल्य योगदान दिया है । हिंदी के विषय मे अमीर खुसरो जो ‘ तूतिये हिन्द के नाम से भी विख्यात है , कहते हैं।

चूं मत तती हिदं अर रास्त पुरसी, जे मन हिन्दवी पुरस ता नग्ज गोयम। अर्थात मैं हिंदुस्तान की ‘ तूती ‘ हूँ।
अगर मुझसे सच पूछते हो तो हिंदी में पूछो जिससे मैं कहीं अच्छी बातें बता सकूं 

वास्तविकता भी यही है अपनी मूल भाषा में ही बेहतर वैचारिक सम्प्रेषण सम्भव है ।  हिंदी भाषा पढ़ने, लिखने व बोलने में सहज व सरल है तथा कविता , कहानी, नाटक, उपन्यास आदि सभी विधाओं में प्रचुर साहित्य उपलब्ध है । यह उदार भाषा है जिसने अन्य भाषाओं के अरबी, फारसी, अंग्रेजी भाषा के शब्दों को उनके मूल रूप में ही आत्मसात कर लिया । देश में 65 प्रतिशत हिंदी भाषी जनसंख्या है , लगभग हर प्रान्त के लोग हिंदी जानते व समझते हैं । अन्य भाषाओं के समान हिंदी का भी विज्ञान है।

किंतु आज अपने ही देश मे हिंदी  उपेक्षित व पिछड़ेपन का दंश सहन कर रही है ।औपनिवेशिक काल मे ब्रिटिश सत्ता ने देश को राजनैतिक रूप को गुलाम बनाने के साथ साथ यहाँ की संस्कृति पर भी प्रहार किया। उनकी भाषा अंग्रेजी थी अतः व्यापारिक, राजनीतिक व व्यवहारिक कार्यों के लिए उन्होंने रंग व रक्त से भारतीय परन्तु सोच, रुचि, नैतिकता व बुद्धि से अंग्रेज परस्त वर्ग तैयार किया ।

थोड़ी सी अंग्रेजी जानने वाले को नौकरी व अन्य तरह की सुविधाएं प्रदान की । यहीं से हिंदी के दुर्दिन प्रारम्भ हो गए । स्वाधीनता आंदोलन के दौरान जून 1946 में गांधी जी ने भारत के स्वतंत्र होने के छः माह के बाद सम्पूर्ण देश के कामकाज  हिंदी में होने की बात कही थी, परंतु आजादी के 71 वर्ष बीत जाने के बाद भी अधिकांश संस्थानों में कामकाज अंग्रेजी में ही होता है ।
सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा का स्थान देकर इस भाषा को सुधारने का प्रयास किया।किंतु 1960 में दक्षिण में हिंदी हटाओ ,उत्तर में अंग्रेजी हटाओ अभियान ने हिंदी की क्षति की ,साथ ही तकनीकी  विषयों पर हिंदी में शब्दावली व पुस्तकें न होने के कारण भी हिंदी का गौरव न्यून हो रहा है।

कर्नाटक (बंगलूरू) के डॉ जयंती प्रसाद नौटियाल की शोध रिपोर्ट में हिंदी को विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा बताया गया है तथा विश्व में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिये कार्य कर रहे ग्वालियर के आचार्य राजेन्द्रनाथ मेहरोत्रा ने भी अपने विश्वविख्यात  ग्रन्थ श्रृंखला के प्रथम खंड में इसे सही माना है ।विश्व की सबसे बड़ी भाषा होने के बावजूद हर जगह अंग्रेजी प्रभावी है। अंग्रेजी भाषा को बोलना व सीखना अपेक्षाकृत कठिन होने के कारण हिंग्लिश को प्रश्रय मिल रहा है ,जिसमें हिंदी के साथ अंग्रेजी के वाक्य शामिल हैं।

हिंदी के उत्थान के लिये 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस व हिंदी सप्ताह मनाया जाता है।यूनेस्को का भी मानना है भाषा सिर्फ संपर्क,शिक्षा व विकास का माध्यम न होकर व्यक्ति की विशिष्ट पहचान होती है,तथा उसकी संस्कृति ,परंपरा एवं इतिहास का कोष है। भाषा के इसी महत्व को प्रदर्शित करने के लिए यूनेस्को ने 2019 को स्वदेशी भाषाओं के वर्ष के रूप मे मना रहा हैपरंतु समाज व सरकार की उपेक्षा के कारण हिंदी अपने राजभाषा के गौरव से बहुत दूर है।हिंदी हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर है। अतः पूरी निष्ठा एवं दृढ़ संकल्प से हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार करने के लिए ठोस प्रयास करने व उन्हें कार्यरूप में परिणित करने की आवश्यकता है

अंग्रेजी पढ़के जदपि, सब गुण होत प्रवीण
  पै निज भाषा ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।।
   जय हिंदी, जय हिंदुस्तान