सुप्रीम कोर्ट ने रेप केस मे टू-फिंगर टेस्ट के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है। जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमा कोहली की बेंच ने यह चेतावनी भी दी है कि इस तरह के टेस्ट करने वाले व्यक्तियों को कदाचार का दोषी ठहराया जाएगा। बेंच ने कहा कि दुर्भाग्य है कि यह टेस्ट आज भी जारी है।
बेंच ने स्वास्थ्य मंत्रालय को निर्देश दिया है कि यह सुनिश्चित किया जाए कि किसी भी स्थिति मे यौन उत्पीड़न या रेप सर्वाइवर का टू फिंगर टेस्ट नही होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना HC के उस फैसले के खिलाफ सुनवाई की, जहां कोर्ट ने आरोपियों को रिहा कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई है।
बेंच ने एक रेप केस मे फैसला सुनाते हुए कहा कोर्ट ने बार-बार रेप केस मे टू फिंगर टेस्ट नही करने आदेश दिया है। इसका कोई वैज्ञानिक आधार नही। इसके बजाय यह महिलाओं को बार-बार रेप की तरह ही प्रताड़ित करता है। यह टेस्ट एक गलत धारणा पर आधारित है कि एक सेक्शुअली एक्टिव महिला का बलात्कार नही किया जा सकता है।
बेंच ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह निर्देश भी दिया कि टेस्ट से जुड़े दिशा-निर्देश सभी सरकारी और निजी अस्पतालों तक पहुंच जाएं। इसके अलावा कोर्ट ने हेल्थ वर्कर्स को वर्कशॉप के जरिए विक्टिम की जांच करने वाले दूसरे टेस्ट की ट्रेनिंग देने भी कहा। साथ ही मेडिकल सिलेबस का रिव्यू करने कहा है, ताकि इसे हटाया जा सके और भावी डॉक्टर्स इस टेस्ट की सलाह न दें।
टू-फिंगर टेस्ट एक मैन्युअल प्रक्रिया है। इसके तहत डॉक्टर पीड़िता के प्राइवेट पार्ट मे एक या दो उंगली डालकर टेस्ट करते है कि वह वर्जिन है या नही। यदि उंगलियां आसानी से चली जाती है तो माना जाता है कि वह सेक्सुअली एक्टिव थी। इससे वहां उपस्थित हाइमन का पता भी लगाया जाता है। इस प्रक्रिया की तीखी आलोचना होती रही है। यह किसी पीड़िता की गरिमा के खिलाफ है। इसके अलावा यह अवैज्ञानिक भी है और जानकार मानते है कि इससे यह पता लगा पाना मुश्किल होता है कि रेप हुआ है या नही।