श्रीकृष्ण और राधा के प्रेम कहानी की मिसाल दी जाती है। भले ही दोनों विवाह के बंधन मे नही बंधे, लेकिन इनका प्रेम अमर है। रुक्मणी के कृष्ण, राधा के प्रेम मे इस कदर समर्पित थे कि आज भी उनके नाम से पहले राधा रानी का नाम लिया जाता है।
उनके मन मे बस राधा थी। उनकी बांसुरी भी बस राधा के लिए ही बजी। कहा जाता है कि जब वो ब्रज छोड़ रहे थे तो अपनी बांसुरी राधा को देकर आ गए थे। जिसके बाद राधा प्रेम दिवानी बांसुरी बजाने लगी थी। इनके प्रेम की हजारों कहानियां है। एक कहानी राधा के चरणामृत की है जिसे कान्हा ने पिया था।
एक बार गंभीर रूप से कृष्ण पड़ गए थे बीमार।
बताया जाता है कि एक बार श्रीकृष्ण बहुत बीमार पड़ गए। उन्हें वैद्य ने तरह-तरह की जड़ी-बूटियां दी। लेकिन वो ठीक नही हो पा रहे थे। पूरा ब्रज उनकी सेहत को लेकर चिंता मे था। इसके बाद श्रीकृष्ण ने गोपियों से कहा कि वे अपना चरणामृत उन्हें पिलाएं तो उनकी सेहत ठीक हो जाएगी। कन्हैया का मानना था कि अपने किसी खास भक्त के पैरों का जल पीने से उनकी बीमारी दूर हो जाएगी। लेकिन सवाल था कि उन्हें चरणामृत पिलाए कौन।
राधा ने कृष्ण को ठीक करने के लिए पिलाई चरणामृत।
श्रीकृष्ण का ऐसा कहना और गोपियों का डर जाना। गोपियों का मानना था कि अगर उनका चरणामृत पीने से कान्हा ठीक नही हुए तो उन्हें पाप लगेगा। उन्हें नर्क जाना पड़ेगा। लेकिन वो बेचैन हो गई अपनी कृष्ण को ठीक करने के लिए वो कोई दूसरा तरकीब निकाल रही थी तभी वहां राधा आई। उन्होंने गोपियों से पूछा कि क्या हुआ है। तब उन्होंने राधा से सारी बात बता दी। जिसके बाद वो अपना चरणामृत पिलाने को राजी हो गई। उन्होंने कहा कि अगर मुझे नर्क भी जाना पड़ेगा तो जाऊंगी, लेकिन कृष्णा को इस तरह नही देख सकती हूं।इसके बाद राधा ने खुद अपने पैर को धोया और उसका पानी कृष्ण को दिया। जिसे कृष्णा ने पी लिया और वो जल्द ही ठीक हो गए।